Thursday, May 27, 2010

क्षणिकाएं / डॉ0 उमेश महादोषी

//सत्रह//

बहुत उड़ लिए
आकाश में
पक्षी प्यारे!
अब उतरो धरती पर
सूंघो/ तुम भी
लहू की गंध
देखो / बने
बारूद के तारे

//अठारह //

लाल अक्षरों में
अब / हमें
रोपना ही होगा
पर्णहरित
अन्यथा / शब्द सारे
राख हो जायेंगे
और भाषा मर जाएगी


//उन्नीस//

तुम्हारी ओरसे / आज
मैं लड़ रहा हूँ, इतिदेव!
तारीखों को
गवाह बनने दो

कल मेरी ओर से
कौन लड़ेगा ?
उत्तर दो !


//बीस //

कुछ हारी, कुछ जीती
लग गई है होड़
बाजियों में
बिक गया है
वतन मेरा

दलालियों में




2 comments:

भगीरथ said...

kshanikaye sab padi achchhi lagi
badhai

visit
gyansindhu.blogspot.com

सुरेश यादव said...

sundar kavitaon के लिए बधाई.