Wednesday, September 3, 2014

विगत एक वर्ष में लिखी गई क्षणिकाओं में कुछ ये भी हैं-




इकहत्तर

नागफनी के जंगल में
उगा है 
यह शहर
क्या इतना काफी नहीं है
इसे समझने के लिए?

बहत्तर

नागफनी के जंगल में
जरूर उगा है 

यह शहर
पर इसने अपने हाथों से 
उगाये हैं
कुछ गुलाब
कुछ सूरजमुखी!

तिहत्तर

पहचान का क्या...
और अर्थ का भी
क्या करुंगा...!
शब्द होना ही
मेरे लिए
समुन्दर होना है!

चौहत्तर

जीवन पुस्तक
समर्पित की मैंने
एक प्रश्न को-
‘क्या तुम मुझे
सचमुच प्रेम करते हो!’