Friday, March 5, 2010


क्षणिकाएं / उमेश महादोषी



//पांच //
जब कभी/ मैंने

किसी पत्ते पर बैठकर

कोई नदी पार की है

मेरा वजन बढ गया है

और पत्ता/ मेरे लिए

नाव बन गया है

//छ://

दूर तक/ देखता रहा

बहती नदी को

पानी भी

आकाश नज़र आया

वह/ उठा और चला गया

नदी किनारे/ फिर

कभी नहीं आया

//सात //
गंगू की आँख में

सरसों उगी

और मस्तक में

कोल्हू चला

पर/ लटकाकर उल्टा

उसके भाग्य को छत से

तेल सारा

राजा भोज पी गया

//आठ//

सेंजना में डूबती है गाय

हाय! कोई न बचाय

तू भी देख ले

ओ बे नियंता !

तेरी हाय हाय हाय !!!

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