Friday, January 21, 2011


||उनतालीस||
कुछ उम्मीदों की कंदीलें
कुछ कल्पनाओं की फुलझड़ियाँ
एक त्यौहार-सा मनायेंगे
और भूल जायेंगे
एक दिन बाद-
वर्ष में कुछ नया जैसा भी होता है!

||चालीस||
नए साल के बारे में
क्या सोचूं?
पुरानी
उम्मीदों और सपनों को
आगे लाने भर से
खाते
का
पूरा
पन्ना भर जाता है!

||इकतालीस||
कल सुबह
जब मैं उठूँगा
सामने होंगी- मेरा माथा चूमती हुईं
कुछ किरणें- सूरज की
मैं थोड़ी देर आँखें मूदूंगा , मुस्कराऊंगा
और फिर
दिन भर के काम पर लग जाऊँगा!

||बयालीस||
चिड़ियों के
नाम-रूप भूल गया
पर उनकी चहचहाहट
आँखों में मचलती है
जीवन के इस अन्टार्कटिका पर देखो
सांसों की एक चिड़िया
कैसे फुदकती है!