Wednesday, September 11, 2013

चार और क्षणिकाएँ

{..........इस पोस्ट के लिए प्रतीक्षा में थीं कई क्षणिकाएँ। मैं सोचता रह गया और कलम के अन्तस में बहती नदी के मुहाने से पाठकों की दृष्टि के सागर में तैरने को निकल पड़ीं ये रचनाएँ!}



इकसठ

चिड़िया 
खेत चुंगकर जा चुकी है
और रखवाली को
राजा ने
गिद्ध भेजे हैं

इन्सानो!
सुन सको तो
मेरा आवाज सुन लो!

वासठ

इन्द्र ने 
हारने की बजाय
हेल्मेट पहनकर
कन्धे पर बैठा लिया है
भस्मासुर को

देवता और मनुष्यो!
राज किसका है
पहचान लो!

तिरेसठ

कहते हैं
वे
गुलेलों से
कौए उड़ा रहे हैं
और तोपों के 
खुले मुँह
हँसे जा रहे हैं

चौंसठ

चिड़ियों का
करके कत्ल
बाज
सुरक्षा माँगते हैं
गिद्ध भोजन कर रहे हैं

कुर्सी पर बैठे
गरुण देव
आँखें मल रहे हैं!