//सत्रह//
बहुत उड़ लिए
आकाश में
पक्षी प्यारे!
अब उतरो धरती पर
सूंघो/ तुम भी
लहू की गंध
देखो / बने
बारूद के तारे
//अठारह //
लाल अक्षरों में
अब / हमें
रोपना ही होगा
पर्णहरित
अन्यथा / शब्द सारे
राख हो जायेंगे
और भाषा मर जाएगी
//उन्नीस//
तुम्हारी ओरसे / आज
मैं लड़ रहा हूँ, इतिदेव!
तारीखों को
गवाह बनने दो
कल मेरी ओर से
कौन लड़ेगा ?
उत्तर दो !
//बीस //
कुछ हारी, कुछ जीती
लग गई है होड़
बाजियों में
बिक गया है
वतन मेरा
दलालियों में
Thursday, May 27, 2010
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2 comments:
kshanikaye sab padi achchhi lagi
badhai
visit
gyansindhu.blogspot.com
sundar kavitaon के लिए बधाई.
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