Sunday, November 26, 2017

दीपावली की क्षणिकाएँ

चौरानवे

भारी मन से
हवा
मुस्कुराई है
नए वाहन पर
होकर सवार
रोशनी आई है!

तिरानवे

धुएँ का विष
साँसों में भर रहा है
संकल्प है मगर
जीवन का
एक दीपक
फिर भी
जल रहा है!

वानवे

ये लड़ियों के
सहोदर
दिये हैं
इनकी लौ में
अजनबी साया है
गाँव के पास से
गुुजरती नदी के जल में
एक प्रतिबिम्ब
छाया है

इक्यानवे

उखट गईं
सब रिश्तों की जड़ें
विचारों के प्लावन में
इस दीवाली
गले मिलूँगा
बस अपनी परछाईं से!

नब्बे

जलती प्लास्टिक की बूँदें
गिरती हैं
वदन के चर्म पर
अपनी अंतड़ियों को
घुटनों में छुपाये
धर रहा है कुम्हार
मलहम के फाये!

नवासी

बहुत
उदास है दीवाली
पराई रौशनी में नहाई है
जी मचलता है
उसे अपनों की
याद आई है!

अठासी

देखता रहा...
देखता रहा...
विद्युतावलियों का
रंगीन प्रकाश
और खो गया
नन्हें दीपक का
मृदुहास!

सतासी

प्रकाश तो बहाना था
रिश्तों के उल्लास का
अब रिश्ते तरसते हैं
प्रकाश की झलक को
दीपावली आती है
और
चली जाती है!

चित्र : गूगल से साभार 
छियासी

इन लड़ियों की
जगमगाती रौशनी में
मन खिल रहा है
पर
धीमे-धीमे
देश जल रहा है!

पिचासी

हवा कराहती है
आकाश रोता है
दीपक
दोनों के
आँसू ढोता है
प्रकाश के आँगन में
अब
ऐसा ही होता है!

चौरासी

टूटे दिये
जुड़ जायें
और
भोले बाबा
विष
पचाएँ
तब कहीं
हम दीपावली मनाएँ!

तिरासी

हे कृष्ण!
तुम्हारी बंशी की
यह ध्वनि निराली है
आँखों में छाया धुआँ
और
हृदय में भीषण शोर
किन्तु दीवाली है!

बयासी

हाथों में फुलझड़ियाँ
और सामने
दीवारों पर
प्लास्टिक की विद्युतलड़ियाँ
निकल गया मध्य से
सूँ...ऽ..ऽ...ऽऽ
एक रॉकेट
करता हुआ आखेट!

इक्यासी

गन्ध-सुगन्ध है
रोशनी है
रंग है
यत्र-तत्र खनक है
मन में किन्तु कसक है
इस दीवाली की
यह एक झलक है!

अस्सी

बंजारे नाचें
अँधियारों में
सेठ-शाह
रोशन गलियारों में
किसकी दीवाली है
प्रश्न बड़ा तीखा है
कूचों में, दरबारों में!

उनासी

स्वादिष्ट बड़े पकवान
चित्र : गूगल से साभार 
और मोहक हैं
दृश्य निराले
रोशन हैं घर
रंग-बिरंगी टँगी झालरें
घूम रहे हैं लेकिन
साये काले-काले!