क्षणिकाएं/ डॉ० उमेश महादोषी
//नौ //
खुदा! लगने लगा है
तेरी चापों से / बेहद डर
मत आया कर / अब
तू मेरे घर
रिसने दे मुझे
बनकर स्याही / मेरी कलम से
तेरी तूलिका से / छिटक गया है
मेरा मन!
//दस//
तालाब की मछली को
बार-बार पकड़ना चाहा
पर/ पकड़ नहीं आई
हर बार
पेड़ पर बैठी चिड़िया
मेरे कान में चहचहाई
//ग्यारह//
कलम की छोटी-सी कोख से
पैदा हुआ / इतना बड़ा मैं
लोगों ने
कलम का दर्द ही समझा
और मैं
रिसता रहा / स्याही बनकर
अच्छर-अच्छर ......!
// बारह //
गोबर में
छिपा है- खुदा
खाद के रास्ते
पौधों तक पहुंचता है
बदलकर अन्न में
मिटाता है- छुधा
Wednesday, May 5, 2010
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