Friday, January 26, 2018

शहीदों को अर्पित कुछ क्षणिकाएँ


जेल में
महान शहीद भगत सिंह 
(महाकवि
श्रीकृष्ण सरल जी की कृति
 'क्रांति गंगा' से साभार )
आज गणतंत्र दिवस पर देश को आजादी दिलाने वाले तमाम जाने-माने और भूले-बिसरे शहीदों को भावांजलिस्वरूप प्रस्तुत हैं कुछ क्षणिकाएँ-




एक सौ 

स्वच्छंद खड़े
हम
धुआँ सिगरेट का
हवा में उड़ाते हैं
लहराती 
स्वच्छ हवा ये
किसने सौंपी है हमें
क्या सोच पाते हैं!

निन्यानवे 

तोपों और बन्दूकों से
वे नहीं मरते कभी 
जब भी मरते हैं वे
हमारी ‘सोच’ से मरते हैं

अट्ठानवे 

महान होती हैं
कुछ परम्पराएँ
उनकी मृत्यु होती है
तो समूल नष्ट हो जाती हैं-
संस्कृतियाँ
और राष्ट्र भी

हमें याद रखना है
शहादत हमारी
सबसे महान परम्परा है!

सत्तानवे 

याद रखें या नहीं 
उन्हें
पर इतना अहसास तो हो हमें
चटख फूलों की तरह
खिले थे वे
और जब समय आया
हमें जीवन-आशीष देने वाली
देवी की 
भेंट चढ़े थे वे!

छियानवे 

उनकी सोच की सुरम्य सुरंग में
महान  शहीद
अशफ़ाक़ उल्ला खान  

(महाकवि 
श्रीकृष्ण सरल जी की कृति
 'क्रांति गंगा' से साभार )

जो बसा था
उस ‘दीप्तिमान’ में
सर्प-बिल बना रहे हैं- चूहे
अपने ‘मूसे’ को संरक्षित करें 
भगवान गणेश
हमें ‘चूहों’ का 
संहार करना है

पिचानवे 

समर्पित है 
हमारी ‘भक्ति’
उनके ‘तेज’ में
उनके ‘वेष’ में
और
उनके ‘शेष’ में 
जो ‘अभक्त’ हैं
यानी राक्षसी ‘दंश’ हैं
वे सिर पीटें
या पीटें ‘ढोल’
बंद नहीं होगा-
‘जय हिन्द’ का बोल!

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (28-01-2017) को "आया बसंत" (चर्चा अंक-2862) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'