||तेईस||
भीगी पलकों के नीचे
उभरा एक बिम्ब
उभरकर / ठहरा तनिक
फिर हो गया जैसे गुम
खुदा की तूलिका ने खींच दिया--
अनंत तक
और वही शून्य !
||चौबीस||
छू नहीं पाई
गहराई
तो / जीनी पड़ी हमें
सागर पार
भरपूर तन्हाई
कितनी भयंकर है , आह!
काला पानी की सजा
Thursday, July 15, 2010
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1 comment:
पक्षी प्यारे!
अब उतरो धरती पर
सूंघो/ तुम भी
लहू की गंध
देखो / बने
बारूद के तारे
बेहतरीन........!!
छू नहीं पाई
गहराई
तो / जीनी पड़ी हमें
सागर पार
भरपूर तन्हाई
कितनी भयंकर है , आह!
काला पानी की सजा
सारा शहर शरीक था मेरे जनाजे पे
और मैं था के तन्हाई से मर गया .....!!
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