जेल में महान शहीद भगत सिंह (महाकवि श्रीकृष्ण सरल जी की कृति 'क्रांति गंगा' से साभार ) |
आज गणतंत्र दिवस पर देश को आजादी दिलाने वाले तमाम जाने-माने और भूले-बिसरे शहीदों को भावांजलिस्वरूप प्रस्तुत हैं कुछ क्षणिकाएँ-
एक सौ
स्वच्छंद खड़े
हम
धुआँ सिगरेट का
हवा में उड़ाते हैं
लहराती
स्वच्छ हवा ये
किसने सौंपी है हमें
क्या सोच पाते हैं!
निन्यानवे
तोपों और बन्दूकों से
वे नहीं मरते कभी
जब भी मरते हैं वे
हमारी ‘सोच’ से मरते हैं
अट्ठानवे
महान होती हैं
कुछ परम्पराएँ
उनकी मृत्यु होती है
तो समूल नष्ट हो जाती हैं-
संस्कृतियाँ
और राष्ट्र भी
हमें याद रखना है
शहादत हमारी
सबसे महान परम्परा है!
सत्तानवे
याद रखें या नहीं
उन्हें
पर इतना अहसास तो हो हमें
चटख फूलों की तरह
खिले थे वे
और जब समय आया
हमें जीवन-आशीष देने वाली
देवी की
भेंट चढ़े थे वे!
छियानवे
उनकी सोच की सुरम्य सुरंग में
महान शहीद अशफ़ाक़ उल्ला खान (महाकवि श्रीकृष्ण सरल जी की कृति 'क्रांति गंगा' से साभार ) |
जो बसा था
उस ‘दीप्तिमान’ में
सर्प-बिल बना रहे हैं- चूहे
अपने ‘मूसे’ को संरक्षित करें
भगवान गणेश
हमें ‘चूहों’ का
संहार करना है
पिचानवे
समर्पित है
हमारी ‘भक्ति’
उनके ‘तेज’ में
उनके ‘वेष’ में
और
उनके ‘शेष’ में
जो ‘अभक्त’ हैं
यानी राक्षसी ‘दंश’ हैं
वे सिर पीटें
या पीटें ‘ढोल’
बंद नहीं होगा-
‘जय हिन्द’ का बोल!