Saturday, February 27, 2010

चार क्षणिकाएँ/ उमेश महादोषी


॥एक॥
मेरे हाथों की लकीरें
ब्लेड से छील देते हो
बार-बार
पर/खून की जिस बूँद से
बनती हैं हजारों-हजार लकीरें
तुम किस चीज़ से काटोगे
उस बूँद के टुकड़े!

॥दो॥
क्या खूब कहानी है
इस सिंघासन की
इस पर बैठने वाला/ हर राजा
हमारी/मुक्ति की
बात करता है
और/ इसके पाये
रखे रहते हैं--
हमारे सीनों पर

॥तीन॥
अम्मा की साँस में
समा गया है--
चूल्हे का धुआँ
खटिया पै पड़ी-पड़ी
वह/नर्क-सा भोगती हैं
क्या करें!
डॉक्टर जानता है/बस
टी बी और दमा

॥चार॥
झोटा रे झोटा
सुन भैंस के ढोटा
उनके भरे गुदाम/ लेकिन
तेरा अपना खाली कुठला

थोड़ी-सी अकल काम ले
अब तो मेरे भाई!
पकी फसल की मेंढ़ों पर
सींग उठाकर डट जा
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